तीन कृषि कानून के विरोध में शुरू हुए किसान आंदोलन को दो महीने से अधिक का समय बित जाने के बाद और कई दफा सरकार औऱ किसानों के बीच मीटिंग के बावजूद भी हालात इस कानून पर कोई हल नहीं निकल पाया हैं. 26 जनवरी को ट्रेक्टर परेड के नाम पर दिल्ली की सड़को और लाल किले पर जो हुआ उसकी जितनी आलोचना की जाए उतनी कम हैं. अब सवाल ये हैं कि 28 जनवरी को किसान नेता राकेश टिकैत का रोना और उसके बाद हुए घटनाक्रम ने क्या किसान आंदोलन को फिर खड़ा कर दिया हैं ? तो इसका जवाब हैं हॉ. इसी बीच पीएम मोदी ने गणतंत्र दिवस के मौके पर हुए उपद्रव और हिंसा को दरकिनार करते हुए कृषि कानून का विरोध कर रहे किसानो को कल सर्वदलीय बैठक के दौरान बातचीत की पेशकल की हैं. पीएम बोले कि कृषि कानून विरोधी किसानों को दिए गए प्रस्ताव का विकल्प अभी खुला है. सरकार बातचीत के लिए केवल एक फोन कॉल की दूरी पर हैं. अब पीएम मोदी के इस प्रस्ताव को लोग अलग – अलग नजर से देख रहे हैं. किसी का कहना हैं कि पीएम मोदी ने ये प्रस्ताव देकर ये स्पष्ट किया हैं कि सरकार इस कानून को लेकर जारी गतिरोध का स्थायी समाधान निकालने के लिए प्रतिबद्ध हैं. तो वहीं कृषि कानून का विरोध कर रहे लोग इसे सरकार की चाल बता रहे हैं. सच क्या हैं ये तो जनता ही डिसाइड करेगी पर इतना तो जरूर हैं कि सरकार ने कृषि कानून को लेकर बातचीत के दरवाजे अब भी खोल रखें है. आपको बता दे कि किसानों ने कृषि कानून को लेकर 11वें दौर की बातचीत में सरकार के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था जिसमें सरकार ने कृषि कानून को अगले 1.5 साल के लिए स्थगित रखने की बात कही थी.