कोकिला व्रत को विशेष कर कुमारी कन्या सुयोग्य पति की कामना के लिए करती है जैसे तीज का व्रत भी जीवन साथी की लम्बी आयु का वरदान देता है उसी प्रकार कोकिला व्रत एक योग्य जीवन साथी की प्राप्ति का आशीर्वाद देता है। इस व्रत को विधि विधान से करने पर व्यक्ति को मनोवांछित कामनाओं की प्राप्ति होती है।
कोकिला षष्ठी व्रत हर साल वैसाख मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है। कोकिला कोयल को कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कोकिला मां गौरी का ही एक रूप हैं। इसलिए आज कोकिला षष्ठी के दिन मां गौरी की पूजा अर्चना की जाएगी। यह व्रत सौभाग्य, संपदा और संतान देने वाला माना जाता है।
कोकिला व्रत की कथा का संबंध भगवान शिव और देवी सती से बताया गया है। इस कथा अनुसार माता सती भगवान को पाने के लिए एक लम्बे समय तक कठोर तपस्या को करके उन्हें फिर से जीवन में पाती हैं।
पूजा में सफेद व लाल रंग के पुष्प, बेलपत्र, दूर्वा, गंध,
धुप, दीप आदि का उपयोग करना चाहिए।
इस दिन निराहार रहकर व्रत का संकल्प करना चाहिए। प्रात:काल समय पूजा के उपरांत सारा दिन व्रत का पालन करते हुए भगवान के मंत्रों का जाप करना चाहिए। संध्या समय सूर्यास्त के पश्चात एक बार फिर से भगवान की आरती पूजा करनी चाहिए। व्रत के दिन कथा को पढ़ना और सुनना चाहिए. शाम की पूजा पश्चात फलाहार करना चाहिए।