प्रभु श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण सहित 14 साल के वनवास जाने की बाते हम सभी जानते हैं। प्रभु श्रीराम के वनवास जाने से पूरी अयोध्या निवासी दुखी थे। राजा दशरथ, राम और लक्ष्मण के वियोग के इस दर्द को झेल नहीं सकें और उनकी मृत्यु हो गई। उसके बाद दोनों भाइयों ने जंगल में ही पिंडदान करने का निश्चय किया। पिंडदान के लिए राम और लक्ष्मण आवश्यक सामग्री को एकत्रित करने के लिए निकल गए। लेकिन उन्हें आने में काफी देर हो गई और पिंडदान का समय निकलता ही जा रहा था। समय को ध्यान में रखते हुए माता सीता ने अपने पिता समान ससुर दशरथ का पिंडदान उसी समय राम और लक्ष्मण की उपस्थिति के बिना करने का फैसला किया।
इसके बाद माता सीता ने पूरी विधि विधान का पालन कर इसे सम्पन्न किया। कुछ समय बाद जब राम और लक्ष्मण लौटकर आए तो माता सीता ने उन्हें पूरी बात बताई और यह भी कहा कि उस वक्त पंडित, गाय, कौवा और फल्गु नदी वहां उपस्थित थे। साक्षी के तौर पर इन चारों से सच्चाई का पता लगा सकते हैं। जब राम ने इस बात की पुष्टि करने के लिए चारों से पूछा तो इन चारों ने ही यह कहते हुए झूठ बोल दिया कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है। इनकी झूठी बातों को सुनकर सीता माता क्रोधित हो गईं और उन्हें झूठ बोलने की सजा देते हुए आजीवन श्रापित कर दिया।
– माता सीता ने सभी पंडित समाज को श्राप दिया कि पंडित को कितना भी मिलेगा लेकिन उसकी दरिद्रता हमेशा बनी रहेगी।
– उसके बाद कौवे को कहा कि उसका अकेले खाने से कभी पेट नहीं भरेगा और वह आकस्मिक मौत मरेगा।
– इसी के साथ गाय को भी श्राप दिया कि हर घर में पूजा होने के बाद भी गाय को हमेशा लोगों का जूठन खाना पड़ेगा।
– फल्गु नदी के लिए श्राप था कि पानी गिरने के बावजूद नदी ऊपर से हमेशा सुखी ही रहेगी और नदी के ऊपर पानी का बहाव कभी नहीं होगा।
माता सीता के दिए वो श्राप, जिसकी सजा आज भी आज भी भुगत रहा है ये समाज
