भारतीय संस्कृति में पूर्वजों को खुश करने के लिए श्राद्ध करना बहुत ही आवश्यक है। कहा जाता है कि यदि श्राद्ध पक्ष में पितरों को तर्पण और पिंडदान नहीं किया गया तो उनकी आत्मा को शांति नहीं मिल पाती है और उनके परिजन भी हमेशा कष्ट में रहते हैं। आज नवमी का श्राद्ध है। माता के श्राद्ध के लिए यह सबसे उत्तम दिन माना गया है।
आचार्य पंडित मोहन शास्त्री के अनुसार, पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव (जौ) तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से अंश लेकर वह अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र उर्ध्वमुख होने लगता है।
15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं। इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से पितरों को प्राप्त होता है। गया में श्राद्ध करने का विशेष महत्व पितृपक्ष में हिंदू लोग मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हैं।
पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं। निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है, परंतु गया में किया जाने वाला श्राद्ध का विशेष महत्व है। वैसे तो इसका भी शास्त्रीय समय निश्चित है, परंतु ‘गया सर्वकालेषु पिण्डं दधाद्विपक्षणं’ कहकर सदैव पिंडदान करने की अनुमति दे दी गई है।