पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने शुक्रवार, 12 मई 2021 को अपने एक फैसले के दौरान ‘लिव-इन’ रिलेशनशिप में रह रहे दो लोगों को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया। अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि लिव-इन संबंध नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं हैं। अदालत ने कहा कि अगर इस तरह की सुरक्षा दी जाती है, तो समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा।
जानिए क्या है पूरा मामला
दरअसल, न्यायमूर्ति एचएस मदान ने पंजाब के तरनतारन जिले के दो प्रेमी युगल द्वारा अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की माँग करने वाली याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया गया। याचिकाकर्ता दंपति, गुलजा कुमारी और गुरविंदर सिंह ने अपनी याचिका में कहा था कि वर्तमान में वे एक साथ रह रहे हैं और जल्द ही शादी करने का इरादा रखते हैं।
इन दोनों ने लड़की के माता-पिता से अपनी जान को होने वाले खतरे को लेकर चिंता व्यक्त की थी। यह दंपति ‘लिव-इन’ रिलेशनशिप में रह रहा था। याचिकाकर्ता के वकील जेएस ठाकुर ने कहा कि मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की रहने वाली लड़की, जिसका परिवार कि अब लुधियाना में रहता है, की उम्र 19 साल और तरनतारन निवासी लड़के की उम्र 22 साल थी और दोनों एक-दूसरे से शादी करना चाहते थे।
उन्होंने बताया कि आधार कार्ड जैसे कुछ अन्य दस्तावेज लड़की के परिवार के पास होने के कारण दंपति की शादी नहीं हो सकी। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस पूरे मामले में, उज्जवला (लड़की) और लड़का, मनप्रीत ने एक-दूसरे से शादी किए बिना ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ में होने का दावा किया था और चाहते थे कि हाईकोर्ट लड़की के परिवार से उनके जीवन की रक्षा करे।
जिस पर न्यायमूर्ति मदान अपने आदेश में कहा, “वास्तव में, याचिकाकर्ता वर्तमान याचिका दायर करने की आड़ में अपने लिव-इन-रिलेशनशिप को जायज ठहराने की मुहर लगवाना चाहते हैं, जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है। याचिका में कोई सुरक्षा आदेश पारित नहीं किया जा सकता है। याचिका तदनुसार खारिज कर दी जाती है।”