Narak Chaturdashi 2021: कार्तिक मास में नरक चतुर्दशी का पर्व धनतेरस के बाद मनाया जाता है। इसे रूप चौदस, काली चौदस, छोटी दीवाली या नरक निवारण चतुर्दशी के रूप में भी जाना जाता है। यह अक्सर हिंदू कैलेंडर अश्विन महीने की विक्रम संवत्में और कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (चौदहवें दिन) पर होती है। यह दीपावली के पांच दिवसीय महोत्सव का दूसरा दिन है।
माना जाता है की इसी दिन रामभक्त हनुमान का भी जन्म हुआ था और इसी दिन वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगते हुए तीनों लोकों सहित बलि के शरीर को भी अपने तीन पगों में नाप लिया था।
महत्त्व
धार्मिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था। जिसकी वजह से इसे नरक चतुर्दशी कहते हैं। नरकासुर का वध किसी स्त्री के हाथों ही लिखा था। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथा बनाकर नरकासुर का वध किया था। नरकासुर का वध करके श्रीकृष्ण ने 16,000 कन्याओं को उसके बंधन से मुक्त कराया था। नरकासुर से मुक्ति पाने की खुशी में देवगण व पृथ्वीवासी बहुत आनंदित हुए और उन्होंने यह पर्व मनाया गया। माना जाता है कि तभी से इस पर्व को मनाए जाने की परम्परा शुरू हुई।
शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार 3 नवम्बर 2021 को प्रात: 09:02 से चतुर्दशी तिथि प्रारंभ होकर 4 नंबर 2021 प्रात: 06:03 पर समाप्त होगी। पंचांग भेद के कारण तिथि में घट-बढ़ हो सकती है। उपरोक्त मान से रूप चौदस या नरक चतुर्दशी 3 तारीख को मनाई जाएगी।
अमृत काल – 01:55 से 03:22 तक।
ब्रह्म मुहूर्त – 05:02 से 05:50 तक।
विजय मुहूर्त – दोपहर 01:33 से 02:17 तक।
गोधूलि मुहूर्त- शाम 05:05 से 05:29 तक।
सायाह्न संध्या मुहूर्त- शाम 05:16 से 06:33 तक।
निशिता मुहूर्त- रात्रि 11:16 से 12:07 तक।
नरक चतुर्दशी की पूजा विधि :
1. इस दिन यमराज, श्रीकृष्ण, काली माता, भगवान शिव, रामदूत हनुमान और भगावन वामन की पूजा की जाती है।
2. घर के ईशान कोण में ही पूजा करें। पूजा के समय हमारा मुंह ईशान, पूर्व या उत्तर में होना चाहिए। पूजन के समय पंचदेव की स्थापना जरूर करें। सूर्यदेव, श्रीगणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु को पंचदेव कहा गया है।
3. इस दिन उपरोक्त 6 देवों की षोडशोपचार पूजा करना चाहिए। अर्थात 16 क्रियाओं से पूजा करें। पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। पूजन के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए।
4. इसके बाद सभी के सामने धूप, दीप जलाएं। फिर उनके के मस्तक पर हल्दी, कुमकुम, चंदन और चावल लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं। पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी अंगुली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी आदि) लगाना चाहिए। इसी तरह उपरोक्त षोडशोपचार की सभी सामग्री से पूजा करें। पूजा करते वक्त उनके मंत्र का जाप करें।
5. पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है। प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है। 6. अंत में उनकी आरती करके नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन किया जाता है। 7. मुख्य पूजा के बाद अब मुख्य द्वार या आंगन में प्रदोष काल में दीये जलाएं। एक दीया यम के नाम का भी जलाएं। रात्रि में घर के सभी कोने में भी दीए जलाएं।