पिछले डेढ़ साल से बाजारों में बढ़ती सेनिटाइजर की मांग को देखते हुए, सेनिटाइजर निर्माता कंपनी ने अब एक खास पौधे से निकलने वाले तेल का इस्तेमाल सेनिटाइजर बनाने में कर रही है। औषधीय गुणों से भरपूर इस पौधे की खेती पिछले कुछ समय से किसान बड़ी मात्रा में कर रहे हैं। इस पौधे का नाम है लेमनग्रास. आम बोलचाल की भाषा में इसे नींबू घास भी कहा जाता है। मेहनत व लागत कम होने और कमाई ज्यादा होने के कारण किसानों का रुझान इसकी तरफ हुआ है। किसान बताते हैं कि एक एकड़ में लेमन ग्रास की खेती कर हर साल कम से कम दो लाख रुपए तक का मुनाफा कमाया जा सकता है।
भारत के इन हिस्सो में होती है लेमनग्रास की खेती
भारत के केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड में किसान लेमनग्रास की मुख्य खेती होती हैं। इसके साथ ही देश के कुछ अन्य राज्यों में भी इसकी खेती होती है।
पौधे (लेमनग्रास) से बनेगा सेनिटाइजर
लेमनग्रास के पत्ते से तेल बनाया जाता है, जिसकी मांग दुनिया भर में बहुत ज्यादा है। इसके डंठल का भी निर्यात किया जाता है। दवाई बनाने के लेकर इत्र, सौंदर्य के सामान और साबुन बनाने में भी लेमनग्रास का उपयोग होता है।
विटामिन ए की अधिकता और सिंट्राल के कारण भारतीय लेमनग्रास के तेल की मांग हमेशा बनी रहती है। कोरोना काल में इसके तेल का इस्तेमाल सेनिटाइजर बनाने में भी हो रहा है।
लेमनग्रास की खेती कर रहे किसान बताते हैं कि इस पर आपदा का प्रभाव नहीं पड़ता और पशु नहीं खाते तो यह रिस्क फ्री फसल है। वहीं लेमनग्रास की रोपाई के बाद सिर्फ एक बार निराई करने की जरूरत पड़ती है और सिंचाई भी साल में 4-5 बार ही करनी पड़ती है।