हरिद्वार महाकुंभ 2021 की तैयारियां जोरों पर हैं. उत्तराखण्ड की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार और केंद्र मोदी सरकार मिलकर इसकी तैयारियों में लगी हुई हैं. कुंभ मेले के लिए शाही स्नान की तारीखों का भी ऐलान हो चुका है. कोविड – 19 के इस दौर में कुंभ का आयोजन भी एक चुनौतिपूर्ण कार्य है. कुंभ मेले का इतिहास काफी पुराना हैं. इतिहासकार बताते हैं कि कुंभ मेलों पर स्नान के लिए उन साधुओं के बीच खूनी संघर्ष हुआ करता था, जिनके दर्शन करने देशभर से लाखों श्रद्धालु आते थे. पहले कौन अखाड़ा नहाएगा, इसको लेकर भीषण संघर्ष होता था. आपको बताते दे कि कुंभ मेलों में हुए खूनी संघर्षों के बाद अंग्रेजों को अखाड़ों के स्नानक्रम के साथ स्नान समय भी निर्धारित करना पड़ा था. साल 1998 में हरिद्वार कुंभ में जूना और निरंजनी अखाड़े के बीच हिंसक संघर्ष हुआ था जहां संघर्ष की वजह स्नान में अधिक समय लेना था. इतिहासकार बताते हैं कि आमतौर पर ऐसे संघर्ष 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक हर बार होते रहे और 18वीं और 19वीं शताब्दी के स्नान संघर्ष इतने भयानक थे कि प्रत्येक कुंभ में हजारों साधु मारे गए और घायल होते थे. बताया जाता है कि हरिद्वार और प्रयाग में स्नान की जगह न मिलने पर जबरदस्त संघर्ष होते थे.