प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. चितरंजन भाटिया

नवनीत कुमार गुप्ता
देश ने एक अग्रणी जैव प्रौद्योगिकीविद् और जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के पूर्व सचिव, डॉ. चितरंजन भाटिया का 13 जून, 2022 को निधन हो गया उनका नाम भारत में आनुवांशिकी फसलों यानी जीएम फसलों पर शोध से जुड़ा था। भाटिया उन वैज्ञानिकों में से एक थे जिन्होंने देश में जीएम अनुसंधान संबंधी अनुसंधान कार्यों के लिए इसके बीजों के आयात की अनुमति दी थी। उन्हें कृषि अनुसंधान, विकास और प्रबंधन में महत्वपूर्ण कार्य किया।

डॉ. चितरंजन भाटिया का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ था। उन्होंने 1955 में पश्चिमी यूपी के सबसे बड़े कॉलेजों में से एक मेरठ कॉलेज से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की थी।

डॉ भाटिया ने रॉकफेलर फाउंडेशन (1961-62) के साथ एक शोध सहयोगी के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद वे कृषि विश्वविद्यालय, वैगनिंगन, नीदरलैंड्स में एक शोध सहयोगी के रूप में शामिल हुए। इसके बाद वे ब्रुकहेवन नेशनल लेबोरेटरी, अप्टन, न्यूयॉर्क, अमेरिका के जीव विज्ञान प्रभाग में अनुसंधान सहयोगी के रूप में शामिल होने के लिए अमेरिका चले गए थे। डॉ भाटिया वर्ष 1966 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) में शामिल हुए और 1993 तक जीव विज्ञान प्रभाग में विभिन्न क्षमताओं में काम किया। उन्होंने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में विकिरण तकनीकों का उपयोग करके फसलों के गुणों को बढ़ाने में काम किया। उन्होंने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में अपने शोध समूह के साथ काले चने, मूंग, अरहर, मूंगफली की उन्नत किस्मों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ये फसलें महाराष्ट्र और भारत के कई अन्य राज्यों में बड़े पैमाने पर उगायी जाती हैं। उनके समूह ने दलहन और तिलहन की पंद्रह नई किस्में विकसित की। इन किस्मों को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर खेती के लिए अनुमोदित और जारी किया गया था।

वे भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के जैव-चिकित्सा समूह के निदेशक भी रहे। अपने करियर में, 1974-1976 के दौरान, डॉ भाटिया ने वियना में संयुक्त राष्ट्र के संयुक्त विश्व खाद्य संगठन में प्रथम अधिकारी के रूप में भी काम किया था। उन्होंने एशियाई और अफ्रीकी देशों में कई अल्पकालिक कार्य भी किए। डॉ भाटिया ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव के रूप में भारत सरकार की सेवा की और 1995 में सेवा से सेवानिवृत्त हुए। भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव के रूप में, डॉ भाटिया ने देश के भीतर बुनियादी ढांचे को विकसित करके जैव प्रौद्योगिकी पर अनुसंधान कार्यक्रमों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह महाराष्ट्र जैव प्रौद्योगिकी आयोग के सदस्य भी रहे। उनकी पहल के कारण ही देश में बीटी कॉटन लाया जा सका और इससे कई किसानों को फायदा हुआ।

डॉ भाटिया अपने कार्यों के कारण वैज्ञानिक जगत में व्यापक रूप से पहचाने गए। अपने शोध कार्यों ने उन्हें सभी प्रमुख भारतीय विज्ञान अकादमियों का फैलो बनाया। उन्हें आरएन टंडन मेमोरियल अवार्ड (1993), एसके मित्रा मेमोरियल अवार्ड (1995) और ओम प्रकाश भसीन अवार्ड (1995) से सम्मानित किया गया।

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