नई दिल्ली, 25 सितंबर (इंडिया साइंस वायर): भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार उच्च-ऊर्जा विस्फोटकों में प्रयुक्त नाइट्रो-एरोमैटिक रसायनों का तेजी से पता लगाने के लिए तापीय रूप से स्थिर (थर्मली स्टेबल) और कम लागत लागत वाला इलेक्ट्रॉनिक पॉलीमर-आधारित सेंसर विकसित किया है।
विस्फोटकों को नष्ट किए बिना उनका पता लगाना सुरक्षा के लिए आवश्यक है और ऐसे मामलों में आपराधिक जांच, बारूदी सुरंग वाले क्षेत्र में ही उपचार (माइनफील्ड रिमेडिएशन), सैन्य अनुप्रयोगों, गोला-बारूद उपचार स्थल, सुरक्षा अनुप्रयोगों और रासायनिक सेंसर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
हालांकि विस्फोटक पॉली-नाइट्रोएरोमैटिक यौगिकों का विश्लेषण आमतौर पर परिष्कृत उपकरणों में प्रयुक्त तकनीकों द्वारा किया जा सकता है लेकिन अपराध विज्ञान प्रयोगशालाओं या कब्जे से मुक्त कराए गए सैन्य स्थलों में त्वरित निर्णय लेने अथवा उग्रवादियों के पास विद्यमान विस्फोटकों का पता लगाने के लिए अक्सर सरल, कम लागत वाली और ऐसी चयनात्मक क्षेत्र तकनीकों की आवश्यकता होती है जिनकी प्रकृति गैर – विनाशकारी हो।
नाइट्रोएरोमैटिक रसायनों (एनएसी) की गैर-विनाशकारी पहचान करना एक कठिन कार्य है। जबकि पहले के अध्ययन ज्यादातर फोटो-ल्यूमिनसेंट गुणधर्म पर आधारित होते हैं, फिर भी अब तक इन गुणों की प्रविधि के आधार का पता नहीं लगाया गया है। गुणों के आधार पर पता लगाने से विस्फोटकों को ढूँढ़ निकालने में सक्षम सरल कहीं भी ले जाए जा सकने योग्य ऐसा उपकरण बनाने में सहायता मिलती है जिसमे एक एलईडी की मदद से परिणाम देखे जा सकते हैं।
इस तरह की कमियों को दूर करने के लिए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी उच्च अध्ययन संस्थान (इंस्टीटयूट ऑफ़ एडवांस्ड, स्टडी इन साइंस एंड टेक्नॉलोजी), गुवाहाटी के डॉ नीलोत्पल सेन सरमा के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस अंतर को भर दिया है।
उन्होंने परत दर परत (एलबीएल) पॉलीमर डिटेक्टर विकसित की है जिसमें दो कार्बनिक पॉलिमर होते हैं – पहला, पॉली-2-विनाइल पाइरीडीन जिसमें एक्रिलोनिट्राइल (पी2वीपी –सीओ- एएन) होता है और दूसरा, हेक्सेन (पीसीएचएमएएसएच) के साथ कोलेस्ट्रॉल मेथाक्राइलेट का को-पॉलीसल्फोन होता है जो कुछ सेकंड के भीतर एनएसी वाष्प की बहुत कम सांद्रता की उपस्थिति में अवरोध (किसी एसी सर्किट में प्रतिरोध) आने से पर भारी परिवर्तन से गुजरता है।
यहां पिक्रिक एसिड (पीए) को मॉडल एनएसी के रूप में चुना गया था, और पीए की दृश्य पहचान के लिए एक सरल और लागत प्रभावी इलेक्ट्रॉनिक प्रोटोटाइप विकसित किया गया था। टीम ने इलेक्ट्रोनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (डीईआईटीवाई) , भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित इस नई प्रौद्योगिकी के लिए एक पेटेंट के लिए भी आवेदन किया है।