फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने दिल्ली सरकार के उप-मुख्यमंत्री श्री मनीष सिसोदिया के उस निर्णय पर अपना विरोध जताया है जिसमें उन्होंने कहा है कि दिल्ली सरकार से वित्त पोषित 28 कॉलेजों के एडहॉक शिक्षकों को समायोजित करने संबंधी दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को पत्र लिखा है जिसमे कहा गया है कि मनीष सिसोदिया पहले अपने दिल्ली सरकार के स्कूलों में लगे हजारों अतिथि शिक्षकों ( गेस्ट टीचर्स ) को समायोजित करे उसके बाद सरकार के वित्त पोषित 28 कॉलेजों के बारे में सोचे ।
फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ने याद दिलाया है कि इन्हीं शिक्षकों और कर्मचारियों को पहले घोष्ट कहते थे और आज उन्हें समायोजित करने के लिए कुलपति को लिखा जा रहा है, उन्हें मालूम होना चाहिए कि सामान्य वर्गो के शिक्षक एससी/एसटी व ओबीसी के पदों पर पिछले एक दशक से पढ़ा रहे है । फोरम ने सवाल किया है कि आखिर उप-मुख्यमंत्री को सामाजिक न्याय क्यों नहीं नजर आता है ? इस संबंध में डॉ. सुमन ने बताया है कि उपमुख्यमंत्री द्वारा डीयू के एसी / ईसी चुनाव के समय शिक्षकों को भरमाने के लिए चुनावी जुमला सुनाया जा रहा है। डॉ.सुमन का कहना है कि दिल्ली सरकार सबसे पहले स्कूलों में लगे हजारों गेस्ट टीचर्स को समायोजित क्यों नहीं करती है।
दिल्ली सरकार के 28 वित्त पोषित कॉलेजों में समय पर तनख्वाह नहीं दी जा रही। प्रमोशन के बाद उनको एरियर अभी तक नहीं मिला है , एलटीसी बिल व मेडिकल बिल कीलियर नहीं हो रहे है , वहाँ के शिक्षक और कर्मचारी धरने पर बैठे हुए हैं । दिल्ली सरकार उधर ध्यान नहीं दे रही है। ध्यान को भटकाने के लिए एसी/ ईसी चुनाव में एडहॉक शिक्षकों की वोट लेने के लिए चुनावी झुंझना दे रही है। फोरम के चेयरमैन का कहना है कि यदि उप-मुख्यमंत्री वास्तव में शिक्षकों का हित चाहते है तो पहले दिल्ली के स्कूलों में गेस्ट टीचर्स को समायोजित करके दिखाएँ उसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के एडहॉक शिक्षकों के समायोजन के बारे में बयान दें।
उन्होंने ये भी कहा कि सरकार अपने कॉलेजों का रोस्टर ठीक कराएं और प्रिंसिपल पदों पर आरक्षण लागू कर पदों को भरे । उन्होंने बताया कि उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कुछ समय पूर्व दिल्ली सरकार के कॉलेजों में लगे एडहॉक व परमानेंट टीचर्स को घोष्ट टीचर्स की संज्ञा दी थी और आज उन्हीं एडहॉक टीचर्स को समायोजित करने के लिए डीयू कुलपति को पत्र लिख रहे हैं है। डॉ. सुमन ने बताया है कि यह सब इसलिए किया जा रहा है कि एससी/एसटी, ओबीसी कोटे के आरक्षित पदों पर कॉलेज के प्रिंसिपलों ने सामान्य वर्गों के शिक्षकों की नियुक्ति की हुई है।
हाल ही में अब जब नया रोस्टर बनाकर कॉलेजों में स्थायी नियुक्तियों की प्रक्रिया चल रही है तो ऐसे में आरक्षित सीटों पर नियुक्त हुए शिक्षकों को स्थायी नियुक्ति के समय हटाया जा रहा है। बता दें कि शिक्षकों में ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू होने के बाद सामान्य वर्गों के शिक्षकों का विस्थापन हुआ है, वह इसलिए कि वे एससी/एसटी व ओबीसी कोटे की सीटों पर लगे हुए है तथा ईडब्ल्यूएस आरक्षण के तहत शिक्षक लग रहे है । इसीलिए दिल्ली सरकार के उप-मुख्यमंत्री सामान्य वर्गो के शिक्षकों को आरक्षित सीटों पर स्थायी नियुक्ति देने के लिए समायोजन की बात कर रहे है।
यह एक तरह से आरक्षित वर्ग की सीटों को हड़पने की कोशिश है। डॉ. सुमन का कहना है कि उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सामाजिक न्याय यानी दलित, पिछड़े वर्गों के शिक्षकों की चिंता नहीं है, उन्हें केवल सामान्य वर्ग के एडहॉक शिक्षक ही दिखाई दे रहे हैं। जबकि संसदीय समिति की रिपोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय में 4500 शिक्षकों का बैकलॉग दिखाया हुआ है।
बावजूद इसके उपमुख्यमंत्री इन आरक्षित पदों को सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों से समायोजित करवाना चाहते हैं। यदि ऐसा हुआ तो दिल्ली का दलित व पिछड़ा समाज दिल्ली सरकार के इस निर्णय के खिलाफ सड़कों पर आंदोलन के लिए उतारू हो जाएगा। डॉ. सुमन ने यह भी बताया है कि दिल्ली सरकार के स्कूलों में पिछले एक दशक से 10 हजार से ज्यादा गेस्ट टीचर्स कार्य कर रहे हैं और सरकार उन्हें कई बार समायोजित करने का आश्वासन दे चुकी है लेकिन आज तक समायोजित नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ाने वाले गेस्ट टीचर्स उपमुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में आते हैं जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज केंद्रीय विश्वविद्यालय के अंतर्गत एक स्वायत्तशासी संस्थान हैं, यह संसद के अधिनियम द्वारा पारित है इसलिए दिल्ली सरकार के निर्देशों को यहाँ लागू नहीं किया जा सकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय को दिल्ली सरकार सुझाव जरूर दे सकती है।