पिछले साल जब कोरोना वायरस ने भारत में कदम रखे थे तब सरकार ने शुरुआत में ही सतर्कता बरत ली थी और विशेषज्ञों ने दावा किया था की भारत में कोरोना की दूसरी लहर नहीं आएगी। लेकिन, इस साल आई कोरोना की दूसरी लहर ने पूरे देश की जड़े हिला कर रख दी। इससे सरकार की विफलता भी साफ नजर आ रही है। देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति के मुताबिक लॉकडाउन भी उचित इलाज नहीं है कोरोना जैसी घातक बीमारी को फैलने से रोकने के लिए। यहाँ पुनः लॉकडाउन लगाना देश को आर्थिक रूप से संवेदनशील स्थिति में पहुंच सकता है।
भारत में कोरोना वायरस के टीकाकरण की वर्तमान स्थिति-
कोरोना वैक्सीन की कमी:
टीकों की कमी के कारण भारत टीकाकरण हेतु एक सार्वभौमिक नीति नहीं बना सकता। इसे अधिक लक्ष्य केंद्रित बनाने की आवश्यकता है।
वित्त की कमी:
भारत में राज्यों के लिए इसकी संभावना कम है कि वो नीतिगत रूप से टीकों की आपूर्ति, खरीद एवं स्टॉक हेतु वित्त की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित कर पाएंगे।
जागरूकता अभियान:
यदि पुनः लॉकडाउन से बचना है तो मल्टीमीडिया अभियान की सहायता से आम जनता को बड़े पैमाने पर कोविड-19 से जुड़ी सूचनाएँ देने, शिक्षित करने एवं मास्क का उपयोग करने के लिए जागरूक करना होगा, जैसा कि पोलियो एवं एचआईवी के बारे में सूचना देने के लिए किया जाता रहा है।
कच्चे माल की कमी:
टीकों के निर्माण हेतु संयुक्त राज्य अमेरिका से आवश्यक कच्चे माल, बैग, शीशियाँ, सेल कल्चर मीडिया, एकल-उपयोग टयूबिंग, विशेष रसायनों, इत्यादि की आपूर्ति में रुकावट के कारण भी टीकों की उपलब्धता बाधित कर हो रही है।
वैश्विक प्रतिबद्धताएँ :
वैश्विक गठबंधन कार्यक्रम कोवैक्स ने अब तक 84 देशों में 38 मिलियन खुराक वितरित किया है, जिसमें 28 मिलियन भारत द्वारा दिए गए है। इसके अलावा, वैक्सीन कूटनीति पहल के तहत भारत ने 60 मिलियन खुराक वितरित किया है, जिसमें आधा वाणिज्यिक शर्तों पर एवं 10 मिलियन का निर्यात अनुदान के रूप में दिया गया।
घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना:
घरेलू स्तर पर टीकों के निर्माण से जुड़े मुद्दे, जैसे- वित्त की समस्या, प्रोजेक्ट को त्वरित सहमति इत्यादि, को समझ कर उसका तीव्र गति से निराकरण सरकार की प्राथमिकता सूची में होनी चाहिये। आगे जैसे-जैसे आपूर्ति व्यवस्था बेहतर होगी वैसे-वैसे कार्यान्वयन के निर्णयों को बेहतर बनाने तथा दक्षता हासिल करने के लिए टीकाकरण की व्यवस्था को विकेंद्रीकृत किया जाना चाहिए एवं कम-से-कम पांच महीने का स्टॉक रखकर ही निर्यात किया जाना चाहिए।