वरुथिनी एकादशी व्रत 7 मई शुक्रवार के दिन रखा गया है । वैशाख मास कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की हर इच्छा पूर्ण होती है।इसके साथ ही उन्हें बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती हैं।
वरुथिनी एकदाशी का व्रत करने से भगवान नारायण की कृपा सदैव बनी रहती हैं।हिंदू धर्म में एकादशी का खास महत्व होता है।हिंदू पंचाग के अनुसार हर महीने में दो बार एकादशी होती है। एकादशी के दिन लोग भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं। वैशाख माह में पड़ने वाली एकादशी का विशेष महत्व माना गया है।
कथाओं के अनुसार पता चला है कि जब भगवान शिव ने कोध्रित हो ब्रह्मा जी का पांचवां सर काट दिया था, तो उन्हें शाप लग गया था। इस शाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव ने वरुथिनी एकादशी का व्रत किया था। वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से भगवान शिव शाप और पाप से मुक्त हो गए।
पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि 06 मई को दोपहर 02 बजकर 10 मिनट से 07 मई की शाम 03 बजकर 32 मिनट तक रहेगी। जबकि द्वादशी तिथि 08 मई को शाम 05 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगा।
वरुथिनी एकदाशी का व्रत विधि
एकादशी के दिन प्रात:काल स्नान कर के साफ-सुथरे कपड़े पहन लें. इसके बाद घर के मंदिर की सफाई कर के दीया जलाएं. अब भगवान विष्णु को शुद्ध जल या गंगाजल से स्नान कराएं और उन्हें नए वस्त्र धारण करवाएं. अब भगवान विष्णु की विधिवत् पूजा-अर्चना करें. भगवान नारायण की मूर्ति पर तुलसी, दूर्वा, बिल्वपत्र और शमी पत्र अर्पित करें. इसके बाद विष्णु जी को केला, हलवा और खीर का भोग लगाएं. विष्णु जी की आरती के साथ पूजा का समापन करें. एकादशी के अगले दिन अपना व्रत खोलें।