खबरों के मुताबिक चीन लद्दाख क्षेत्र से अपने 10 हज़ार सैनिकों को दूसरी जगह पर भेज रहा है। मीडिया की कुछ रिपोर्ट्स् उत्साह में सर्दी की वजह से चीनी सैनिकों की खराब हालत को इसका कारण बता रही हैं। यहां तक कि इन सैनिकों के पीछे हटने को चीन की कमज़ोरी तक करार दिया जा रहा है।
दरअसल चीन ने पिछले दो हफ्तों के दौरान अपने 10 हज़ार सैनिकों को अपने ट्रेनिंग एरिया से हटा कर
स्थानांतरित किया है। ये ट्रेनिंग एरिया लाईन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल से 80 से 100 किलोमीटर दूर है और
पेंगोंगत्सो के दक्षिण में स्थित है। भयानक सर्दी की वजह से रिज़र्व सैनिकों को दूसरी जगह भेजा जाना एक कारण तो है मगर इसे किसी भी तरह से सैन्य जमावड़े में कमी नहीं कहा जा सकता। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक भारतीय सेना चीन की हर हरकत पर बारीकी से नज़र बनाए हुए है और ऐसी कोई खबर नहीं है कि चीन ने मोर्चे से अपने सैनिकों की तैनाती में कोई कमी की है।
भारत भी अपने कुछ रिज़र्व सैनिकों को दूसरी जगह स्थानांतरित कर चुका है। मिलिट्री बिल्डअप के दौरान बहुत से सैनिक रिज़र्व में रखे गए थे। मगर क्योंकि अब सर्दियों में बर्फ़ की वजह से किसी भी तरह का सैन्य अभियान
संभव ही नहीं है इसलिए रिज़र्व सैनिकों को बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों से कम करना एक व्यावहारिक कदम है।
लद्दाख में चीन और भारत के सैनिकों के बीच झड़पों की पहली खबर 5 मई 2020 से आनी शुरु हो गई थी। 15
और 16 जून की दरम्यानी रात में गलवान में एक झड़प ने तब खूनी रूप ले लिया जब चीन के घात लगा कर
किया। इश हमले में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे। बहादुरी से लड़ते हुए भारतीय सैनिकों ने चीन के कई
सैनिकों को मार गिराया। मारे गए चीनी सैनिकों की संख्या कई ऑब्ज़रवर्स के मुताबिक कम से कम 43 बताई
जाती है। आज सात महीने बीतने के बावजूद चीन ने अपने हताहत सैनिकों की संख्या को आधिकारिक रूप से
स्वीकार नहीं किया है। ये चीन की आक्रामकता का ही नतीजा है कि आज भी युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है।
जिसमें PLA और भारतीय सेना के करीब एक लाख सैनिक दोनों तरफ़ से आमने-सामने खड़े हैं।
रिज़र्व सैनिकों के स्थानांतरण की खबरें हो या बातचीत के दौर, टकराव की ये स्थिति जल्द खत्म होने वाली नहीं
लगती। मगर युद्ध होगा ही, ये कहना भी सही नहीं होगा। हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत के मज़बूत सैन्य जवाब और उतनी ही कड़ी राजनैतिक इच्छाशक्ति ने चीन के इलाका हथियाने पर फ़िलहाल रोक लगा दी है। इसे स्टेल-मेट भी कह सकते हैं। चीन को किसी भी तरह की एकतरफ़ा बढ़त हासिल नहीं हुई है। चीन के इस सैन्य अभियान को जिस तरह का धक्का लगा है, ये चीन के सुपरपावर बनने के सपने के लिए बड़ी चोट ही कहा जाएगा।
कई रक्षा और रणनितिक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि चीन इस अभियान से सम्मानजनक तरीके से निकलने के लिए रास्ता तलाश रहा है। ताकि चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी अपने देश और दुनिया को, सांकेतिक ही सही किसी तरह की जीत या बड़प्पन का हवाला दे सके। जिसे भारत ने अपने सख्त जवाब से मुश्किल बना दिया है।
क्या चीन ने अपने 10000 सैनिक लद्दाख से हटाए?
