एक साथ चुनाव कराने पर चर्चा पहले भी हो चुकी है और वर्तमान में भी इस पर चर्चाओं का दौर जारी है. केंद्र की सत्ता पर काबिज मोदी सरकार एक साथ देश में चुनाव कराने की पक्षधर हैं. आगामी दिनों में तामिलनाडु, असम और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं जिसकी तैयारियां वर्तमान में जोरों पर है. चुनाव आयोग हमेश की तरह सफलतापूर्वक चुनाव का संचालन कराने के लिए तैयारी हैं. विचार करने वाली बात ये हैं कि देश में एक साथ चुनाव कराने के फायदे क्या- क्या है ? भारत में एक साथ चुनाव कराना कोई नया विचार नहीं है. वर्ष 1951-52 में पहले आम चुनाव में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही कराए गए थे और अगले तीन चुनाव इसी तरह हुए. लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों का संचालन अगर एक साथ हो तो इसके कई फायदे हो सकते है, जैसै कि समय की बचत, पैसै की बचत औऱ सबसे अधिक महत्वपूर्ण पेशानी से छुटकारा. यहां पेरशानी से हमारा मतलब इलेक्शन ड्यूटी में लगने वाले कर्मियों और शिक्षकों से है. दरअसल, होता ये है कि जब भी इलेक्शन होता हैं तो शिक्षकों की इलेक्शन में ड्यूटी लगाई जाती है जिससे उनका काफी समय बर्बाद होता है. बार-बार इस तरह की ड्यूटी में लगाने से शिक्षकों के बर्बाद होने वाले कार्य-घंटों की गिनती का जरा अंदाजा लगाइए कि इससे शिक्षा पर कितना असर पड़ता है. इसी तरह सीआरपीएफ और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को नियमित रूप से चुनाव ड्यूटी पर लगाए जाने से आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर पड़ने वाले असर
पर विचार करें. जानकारों का मानना है कि इस तरह की तैनाती उनकी ट्रेनिंग और कानून-व्यवस्था की बहाली को प्रभावित कर सकती है. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि देश में एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसबा चुनाव कराने पर विचार किया जा सकता है. एक साथ चुनाव कराने को लेकर सवाल भी कई हैं जिनका जवाब देना भी आवश्यक हैं. विपक्ष के सवाल और असहमति पर भी विचार किया जाना जरूरी है.
एक साथ चुनाव समय की मांग, आखिर क्या हैं इसके फायदे ?
